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31 दिसंबर 2012




                                                                      
देश के हर नागरिक को गरिमामय जीवन बिताने का अधिकार है और बलपूर्वक या छलपूर्वक इस अधिकार का कोई हनन करे तो यह अन्याय है। इस अन्याय को रोका जा सके, ऐसी अपेक्षा रखना हम नागरिकों का अधिकार भी है और कर्तव्य भी।

इस देश के एक आम नागरिक की हैसियत से मैं प्रशासन, न्यायपालिका और कार्यपालिका से अपील करता हूँ कि स्वयंसिद्ध जघन्य बलात्कार के मामलों में फ़ास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया जाये और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाये ताकि ऐसे कुकर्मों को रोका जा सके।

ब्लॉगर साथी श्री गिरिजेश राव द्वारा  इस विषय पर तैयार जनहित याचिका  का मैं भी समर्थन करता हूँ।

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इस विषय पर कोई सुझाव आपके पास है तो पांच जनवरी 2013 तक न्यायमूर्ति वर्मा की समिति को निसंकोच भेज सकते हैं।

ई मेल: justice.verma@nic.in
फैक्स: 011- 23092675

29 मार्च 2011

कासे कहूं ......... और ......... क्या लिखूं

काफी दिनों से सोच रहा हूँ, कुछ मैं भी लिखूं . कई अज़ीज़ हैं जो लिखने के लिए प्रोत्साहन कर रहे हैं......मैं भी कुछ लिख सकता हूँ ऐसा कभी सोचा न था..........हाँ, पढने की ललक बीमारी की हद तक है.  हम इस जगत से 'ताऊ' नाम के एक मस्त कलंदर के ब्लॉग से जुरे............उनकी हरियाणवी फ्लेवर से बनी कई कहानियों को 'इब खूंटे पे पढयो' से होते हुए जब 'ताऊ के शोले' से गुजर रिया था, तो हमें ब्लॉग-वुड के ठाकुर 'फुरसतिया' एवं गब्बर 'एलियन' के ठीये मिले...........पहली नज़र में ही हम  'फुरसतियाजी' के मुरीद हो गए..........उनको पढ़ते रहे......गुनते रहे.............फिर एक बार उन्होने काफी दिनों तक कुछ लिखा नहीं, तो हमने उनके साईट से उनका 
दूरभाष नंबर लेकर फोन कर तगादा कर दिया..............उन्नोहने हमारी लाज रखते हुए एक पोस्ट में हमारी 
चर्चा भी की..............ओ था उनका पहला प्रोत्साहन. मैंने कई बार सोचा की कुछ लिखा जाये..............लेकिन 
पढने के ऊपर लिखने की धौंस कभी चली नहीं और हम लगातार पढ़ते गए.....पढ़ते गए. गरज ये की मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दावा की. शुक्र है के लिखने की बीमारी पढने की तरह नहीं लगी...........काफी नुकसान हो चुका होता. अगर १५ साल पहले छूटी बीमारी फिर से नहीं ग्रसता तो क्या ये ४ पंक्ति भी लिख पता. नहीं ना.

हमारे पसंदीदा लेखक इस प्रकार से हैं........................

ज्ञानजी/अनूपजी/दिनेशजी/समीरजी/अरविन्दजी/गुरुवर अमर/गिरजेशजी/शिवजी/रविजी द्वय(प्रभात/रतलामी)/अजितजी/अनुराग आर्य/कुश/अनुराग शर्मा/ राहुलजी/प्रमोदजी/ताऊ/सतीश पंचम/सतीश सक्सेना/अजय झा/खुसदीपजी/प्रवीण पाण्डेय/गौतम राजरिशी/सिदार्थ शंकरजी/सुरेश चिपलूनकर/निशांत/हिमांशु  /श्रीश/अपूर्व/नीरज बसियल/मो-सम हमनाम/लपूझन्ना/अनामदास/सुज्ञजी /दीपजी/प्रतुल-गुरूजी/सलिलजी/मोहल्ला/कस्बा/कबाडखाना और ना जाने कितने और अनेको-नेक ..........................

मात्री सक्ति याने के (लछमिनिया पार्टी से) .........

घाघुतीजी/बंदना अवस्थीजी/रंजनाजी/अनुराधा मुक्तिजी/अदाजी/रचना जी/अन्शुमालाजी/हरकीरत हीरजी/दिव्याजी..............और कई एक हैं...................

इस से इतर जो भी पढ़ते हैं ओ हिंदिब्लोग्जगत से.

अब गूगल बाबा जी के कृपा से जिस नाचीज़ को इतने ढेर सारे.........अलग अलग विषयों पर लिखने वाले मिले हों .............. नामुराद को खुद्दै कुछ लिखने की क्या परी है..............यूँ भी यहाँ लिखने वाले की क्या कमी है ....
पढने वालों की कमी है ...............सो हम खालिस पाठक बनकर इस ब्लॉगजगत को बैलेंस करने का काम कर रहे हैं ...................

"चुटकियाँ लेते हुए एहसास पर........
 पिन चुभाई जा रही विस्वास पर.....
 इस नए युगबोध की ये बानगी ......
 अर्घ्य उनका चढ़ गया संत्रास पर....." (शायर का नाम पता नहीं)

"अश्क आखों से गिरा ....
 गालों पे लुढका .. ...
 और टूट गया .......

 काश के पलकों ...
 पे ठहरता ..........
 तो नगीना होता..."(शायर का नाम पता नहीं)

ये जो दो ऊपर शेर-ओ-शायरी लिखे हैं ये हमारे मन के उद्गार हैं जिसे मैं 'कासेकहूँ' के लिए ही रख छोरे थे........
और हमारे देश-समाज के जो हालत आज की तारीख में है उसके लिए भी एक इरशाद कर ही दूं..................

"बावफा के इश्क में शैदा मुझे क्यूँ कर दिया...........
 इस नामर्द मुल्क में पैदा मुझे क्यूँ कर दिया......"(शायर का नाम पता नहीं)

फिलवक्त इत्ता ही काफी है, अगर पास कर गए तो फिर और कुछ कोशिश करेंगे....................आमीन........




7 फ़रवरी 2011

सरस्वती पूजा


विद्या की देवी 'माँ सरस्वती' का पूजन इस वर्ष आज के दिन होने जा रहा है। बचपन में ये 'पूजनोत्सव' धूम-धाम से मनाते थे। सप्ताह पूर्व ही सारी तैयारियां शुरू हो जाती थी। अपने निर्देशन में कुम्हार से मूर्ती बनवाने का जूनून, फिर काकी-भौजी से 'माँ शारदे' के लिए नयी एवं सुन्दर साड़ियाँ लाना , दरवाजे के आगे , दूर-दूर तक घास-फूस की सफाई करना , प्रसाद का मेनू तैयार करना और अंत में विसर्जन के पश्चात 'लराई-भोज' करना। आह, बड़े मनभावन दिन थे वो भी। अब तो मात्र औपचारिकता ही रह गई है। 

3 फ़रवरी 2011

तकनिकी सहयोग

आदरणीय ब्लॉग-मित्रों.
सुप्रभात.

कल हमने किसी तरह कंपोज सुविधा के तहत रोमन में टंकण कर हिंदी में लिखना सिखा. जिस पर आदरणीय द्विवेदी दद्दा ने अपनी टिपण्णी के माध्यम से हमें 'हिंदी टाइपिंग टूल' प्रोयग करने की सलाह दी. आप बंधू-बांधव में से जो कोई भी इस तकनिकी 
को जानते हों कृपया टिपण्णी के माध्यम से हमें इसे डाउनलोड करने का तरीका बताएं. साथ ही वर्ड-वैरीफिकेशन कैसे हटायें?

धन्यवाद.     

2 फ़रवरी 2011